नाट्य संवेदना का संवाहक तत्व रंगशिल्प कहलाता है। नाटककार अपने भाव, विचार तथा कामनाओं को दर्शकों तक प्रभावी एवं कलात्मक रूप में संप्रेषित करने के लिए जिन रंगतत्वों का प्रयोग करता है, उसे ही समन्वित रूप में नाट्यशिल्प तथा रंगशिल्प कहा जाता है।
असग़र वजाहत एक कुशल रंगशिल्पी हैं। इस नाटक में निर्देशक तथा अभिनेता की प्रतिभा को निखारने की अभूतपूर्व क्षमता है। ‘....
