‘असग़र के बारे में मुझे यक़ीन था कि वे जो सोचेंगे- बहुत कुछ हटकर सोचेंगे, कुछ नया सोचेंगे’ - मुज़फ़्फ़र अली
असग़र वजाहत
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हिन्दी साहित्य की पत्रिकाओं की भीड़ में अलग पहचान बनाने वाली 'पाखी' का प्रकाशन सितंबर, 2008 से नियमित जारी है।