‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ यानी सम्पूर्ण मानव जाति को एक परिवार की तरह देखने-मानने की अवधारणा हमारे आर्ष ग्रंथों में मिलती है। ‘जियो और जीने दो’ का सह अस्तित्ववादी सूत्र विश्व समाज को सूत्र बद्ध करता है। लेकिन इक्कीसवीं शदी में आज हर आदमी अजीब उलझन भरी जिंदगी जी रहा है । वह अपने जीवन को अधिक सुंदर, सुरक्षित व संपन्न बनाने के फेरे में ना जाने कितनी ही बार मरता है । वैश्वी....
