कृष्ण बिहारी

 और मर गया स्वप्नदर्शी 

लाई हयात  आए  क़ज़ा ले चली  चले 
अपनी खुशी न आए न अपनी खुशी चले । 
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़ 

 

यही होना है और सबके साथ यही होता है । इस हक़ीक़त को जानते-समझते हुए भी हम दुनिया में हर तरह के कुटेव से ग्रस्त और पीड़ित हैं । यह माया-मोह का बंधन , ईर्ष्या-द्वेष की झुलसन , पद-प्रतिष्ठा की लिप्सा और धन-दौलत के समीकरण हमें चैन से बैठने ही कहाँ देते हैं ....

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