लाई हयात आए क़ज़ा ले चली चले
अपनी खुशी न आए न अपनी खुशी चले ।
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
यही होना है और सबके साथ यही होता है । इस हक़ीक़त को जानते-समझते हुए भी हम दुनिया में हर तरह के कुटेव से ग्रस्त और पीड़ित हैं । यह माया-मोह का बंधन , ईर्ष्या-द्वेष की झुलसन , पद-प्रतिष्ठा की लिप्सा और धन-दौलत के समीकरण हमें चैन से बैठने ही कहाँ देते हैं ....
