झूठ के मुर्दा शहर में आत्मा तक सो गई है ,
सल्तनत में ‘सच’ की यारो शाश्वत अब तीरगी है ।
पहले जो लगता भरम था , असलियत कुछ और ही है
आजकल तो रहबरी से, हो रही बस रहजनी है ।
गुलिस्ताँ में ये अचानक फूल मुरझाने लगे क्यूँ ,
बागबाँ झुठला रहा है क्या अजब दादागिरी है ।
थे बहुत हैरान सागर जब कहा नदियों ने उनसे ,
कर रह....
