शिव कुशवाहा

गाँव अब भी संभावना है

सभ्यता के पुराख्यान का एक पूरा ग्रन्थ
गांवों ने रचना नहीं भूला है
सदियों के बाद भी वहां खड़े हुए हैं दरख़्त
फैली हुई हैं उनकी बड़ी बड़ी शाखाएं

गांव के चबूतरों पर सुस्ताते हुए लोग
मिथकीय चरित को जीवित कर
एक नए बहस को जन्म देकर
विचरते हैं एक कल्पनालोक में

जहां दिवास्वप्न में खोए हुए
कुछ किसान खेतिहर लोक संवादों का
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