सीमा सिंह

वे हमारे जीवन का बसंत थीं

वे हमारे आँगन की बुलबुलें थीं

चहकती महकती बिखरी रहती 

भरे पूरे घर में 

उनके बिना अधूरे थे हमारे सभी 

तीज त्यौहार ,

वे रंगो से भरी कोई पिचकारी थीं 

जिनके चलने से रंग जाते 

घर के दरो दीवार ,


वे मौसमी बार....

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