मुकेश पोपली

ख़्वाब देखता ख़त

अंतरा,
यह ख़त मैं लिख रहा हूं।  
‘मैं?’ 
मैं वही जिसके ख्वाबों में तुम हमेशा रही हो, बचपन से लेकर इस उम्र तक।  मेरा मानना है कि ख्वाबों में उम्र का जिक्र नहीं होता क्योंकि ख़्वाब तो हमेशा वही दिखाते हैं जिन्हें हम अपनी खुली आँखों से नहीं देख पाते।  मुझे यह भी पता है कि ख़्वाब कभी सच्चे नहीं होते लेकिन वो ख़्वाब देखने वाले के दिल में हलचल तो मचा ही सकते हैं।  उसे ए....

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