पाखी का जुलाई 2021 का संपादकीय पढ़ा। समझ में नहीं आया इस सिलबट्टा प्रकरण में स्त्री को जिस सिल और बट्टे को जिस पुरुष का प्रतीक माना गया और यह कहा गया कि सिल स्त्री देह है और बट्टा पुरुष, जिसपर वह स्त्री आकांक्षाओं और मनोकामनाओं को अपने हक में पीसकर चट कर जाता है, चाहे वह चटनी हो या गरम मसाला। इस संपादकीय में भी उसी सिल और उसके बट्टे का खूब-खूब का इस्तेमाल हुआ है। इतना कि समझ के बा....
