आज के चरम कट्टरपंथी भौतिक युग में स्त्री ने अपने लिए राहें बना ली हैं. राहें मुश्किल सही लेकिन वो जानती है बंजर में फूल उगाना. कहने को हम इक्कीसवीं सदी में जी रहे हैं लेकिन आज भी स्त्री की दशा में कितना परिवर्तन आया है यह किसी से छुपा नहीं है. ये दो पंक्तियाँ ही काफी हैं स्त्री की दशा को चित्रित करने के लिए जहाँ वो दोधारी तलवार पर चल रही है. जरा भी बैलेंस बिगड़ा और वो घायल हुई. ....
