प्रभा मुजुमदार

“मानुष-गंध “ पर एक पाठक के नोट्स 

यथार्थ की कटुता एवं कड़वाहट,व्यवस्था की असंवेदनशीलता और नाकारापन, यथास्थितिवाद के अलावा  मानवीय मूल्यों के ह्यस के बीच पिसते, छटपटाते , अपमानित होते और अपनी असहायता-असमर्थता को हर पल शिद्दत से अनुभव करते एक असाधारण प्रतिभावान युवक के सपनों को लगभग धराशायी होते देखने की त्रासदी को – माँ होने के नाते सहलाते- दिलासा देते, रोष को नियंत्रित करते और इस दौरान की तमाम अनुभूत....

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