महिमा श्री

यहाँ किसी की सदा नहीं आती..

यंत्रचालित हुजूम है..
पर कोई नारा नहीं.. जयकारा भी नहीं..
कोई विमर्श नहीं ..चीख भी नहीं.. रुदन भी नहीं
शापित जिस्म ..पथराई आंखोंवाली भीड़ 
गहरे कुँआ जैसी शांत और ठंढी है..
पूछना मत कहाँ हूँ मैं ?
यहाँ किसी की सदा नहीं आती..
यह नया सफ़र है।
तय नहीं था इस पर चलना
तय नहीं कब तक है चलना..
लौट कर आने की कोशिश तो है 
वापसी की तारीख अभी मिली नहीं..

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