मेरे बनाने वाले ने जब से मुझे तालीम की नेमत से नवाज़ा है, मैं पहले पढने का और फिर पढने-लिखने का शैदाई बना जो कि मैं आज तक हूँ और उम्मीद है कि रहती ज़िन्दगी तक रहूँगा. तेरह-चौदह साल की उम्र में जो पहले दो उपन्यास मैंने पढ़े थे, उनमे एक हिंदी लेखक सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ का ‘अनुपमा’ था और दूसरा उर्दू लेखक प्रेमचंद का ‘गबन’ था जिसे मैंने उर्दू में ही पढ़ा था. उसके बाद प....
