सांझ ढलते ही उस बस्ती में सन्नाटा पसरने लगा था। यूं तो गुजस्ता कई दिनों से दिन के उजाले में भी गहमा-गहमी, चहल-पहल गायब ही थी। मानों घाटी के सभी बाशिन्दों को सांप सूंध गया हो। सुबेहो-शाम हर वक्त गुलज़ार रहने वाली वह बस्ती किसी तहखाने में उतर गयी थी। खामोशी के भीतर छिपा मूक सा आर्तनाद या फिर कोई विरह राग हर किसी के दिलो दिमा$ग को छीज रहा था।
नूर की दोनों छोटी बहनें और अम्म....
