अभी चंद्रोदय में देर थी, लेकिन वो तैयार बैठी थी।
जैसे-जैसे तारे रोशन होते थे, उसके माथे की चमक बढ़ती जाती थी।
‘‘सुबह से तैयार बैठी हो बिटिया, अब कुछ खा लो’’
अब वो कैसे बताती काकी को कि वो सुबह से नहीं, कितने दिनों से इस शाम के इंतजार मैं बैठी थी। दस बार घर की व्यवस्था का अवलोकन कर लेने के बाद भी संतुष्टि नहीं थी। हल्की-सी ....
