ख़ुर्शीद आलम

ख़ुशिया

ख़ुशिया सोच रहा था।
बनवारी से काले तंबाकू वाला पान लेकर वो उसकी दुकान के साथ उस पत्थर के चबूतरे पर बैठा था जो दिन के वक़्त टायरों और मोटरों के विभिन्न पुर्ज़ों से भरा होता है। रात को साढे़ आठ बजे के क़रीब मोटर के पुर्ज़े और टायर बेचने वालों की ये दुकान बंद हो जाती है और उसका पत्थर का चबूतरा ख़ुशिया के लिए ख़ाली हो जाता है।
वो काले तंबाकू वाला पान आहिस्ता आहिस्ता चबा रहा था और ....

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