लीलाधर मंडलोई

बात

मुख़्तसर सी बात इतनी है

इबादत है
ये सूफियाना
जैसे झूमना-गाना
इक कलंदर का
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हैरत
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हैरत इतनी कि कितनी ख़ूब
रूह यह
मौहब्बत बस मौहब्बत

जितना भी चाहो ,काटो
घास की तरह

मैं दूब हूं
बार-बार उग जाऊंगा
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मन का हो
या सृष्टि का अंधकार

एक ऐसा तत्व है....

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