कोई-कोई दिन भिक्षुक की तरह फटे-मैले कपड़े पहने हुए जिंदगी की दहलीज पर आ खड़ा होता है और थोड़ी सी उपलब्धि की भीख मागत
अमरीक सिंह दीप
पूरा पढ़े
पूरा देखें
हिन्दी साहित्य की पत्रिकाओं की भीड़ में अलग पहचान बनाने वाली 'पाखी' का प्रकाशन सितंबर, 2008 से नियमित जारी है।