‘अब पहुंची हो तुम’ आखिर पहुंच ही गई मेरे पास। जंजीर में जकड़े ताले से इसकी जीनत की गई है। इस बंद दरवाजे में हकीकत के खाद-पानी से सींची तख्लीक महफूज हैं। 55 तख्लीक। 124 पन्नों में समाई हुई। तमाम घटनाओं, एहसासों और अनुभवों को कविता में पिरोया है महेश चंद्र पुनेठा ने। इन रचनाओं का ही मजमुआ है ‘अब पहुंची हो तुम।’ किताब का यह नाम संग्रह में शामिल ‘गांव में सड़क’ कविता से चुन....
