संजय कुमार शांडिल्य

संजय कुमार शांडिल्य की पांच कविताएं

दुख की राख

इस दरवाजे जो चबूतरा है 
कभी यहां लगती थी ताश की बाजी
और गूंजते थे कहकहे
एक दिन उन कहकहों की आंखें भर आई
पहले वह कलकत्ते चला गया 
बस में बैठकर
मगर वह लौटता था साल छह महीने बीते
चबूतरा इंतजार करता उन कहकहों का
और घर गीत गाता उनके लौट आने का
फिर उन कहकहों के पीछे चले-गए
चूल्हे-चौके और बर्तन
तबसे गिर रहा है इस घर क....

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