नीरजा हेमेंद्र

साथ चलते-चलते

दिसंबर के दिन हैं। सर्दी का मौसम अपने उरूज पर है। सर्दी से बेहाल होकर धूप भी जैसे कहीं छिप-सी गई है। दो दिनों पश्चात् आज हल्की-सी धूप निकली है। रागिनी ने रसोई की खिड़की से बाहर देखा। बाहर खिली हुई धूप बिखरी थी। जिसे देखकर रागिनी की इच्छा होने लगी कि वह धूप को स्पर्श करे...उसे महसूस करे। किंतु कमरे से यह संभव तो न था।
दो दिनों से ठंड इतनी थी कि सबका बुरा हाल हो रहा ....

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