अनुज

अच्छा, तो हम चलते हैं!

सोचता हूं कि कभी कोई ऐसा युग भी आता, जब इस धरती को छोड़कर कोई कहीं न जाता! फिर न तो कोई श्राद्ध होता, न बरसी होती और ना ही श्रद्धांजलि लिखने की नौबत आती। परिवार से लेकर साहित्यिक दुनिया तक, बीते कुछ वर्षों के दौरान मैं यही तो करता रहा हूं- श्राद्ध, बरसी और श्रद्धांजलि! मन में होता है कि ऐसी नौबत ही क्यों आती है कि इन प्रक्रियाओं से गुजरना पड़े, लेकिन क्या कभी कोई इस सत....

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