रजत सान्याल

मेरी यात्रा

क्या लिख सकता हूँ  
मेरी यात्रा , चार कंधो पर सोया हूं 
इस अपनी श्मसान यात्रा में 
कफन ने  सभी जब्त कर लिया है 
रात्रि की सुगंध , 
जितनी भी थी जमा पूंजी और कुछ उधारी 
शब्द अब है मेरे अंतराल में, 
कितने छटपटाते हैं शब्द  
मेरे  रक्त में शामिल  
बहुत नींद आ रही  है  
एक नयी  दुनिया में  प्रवेश हो रहा है  मेरा 
मन होता है एकबार ....

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