सुबह-सुबह लाॅन में बैठे सक्सेना जी आस-पास के खुशनुमा परिवेश का लुत्फ उठा रहे थे। चहकते हुए पाखी,चटकती हुई कलियों से
‘कम उम्र की लड़की’ और ’तार-तार की जाने लगी थी’ जैसे शब्दों ने वार्ताकार की सांसों में गर्माहट-सी ला दी। उसने अलग-सी न
अंजु लता सिंह
बलराम अग्रवाल
पूरा पढ़े
पूरा देखें
हिन्दी साहित्य की पत्रिकाओं की भीड़ में अलग पहचान बनाने वाली 'पाखी' का प्रकाशन सितंबर, 2008 से नियमित जारी है।