कहानी की रचना-प्रक्रिया पर विचार करना भी उतना ही परेशानी भरा आनन्द देता है जितना कि कहानी लिखना। स्वाभाविक है कि रचना-प्रक्रिया के दो स्तर होते हैं- एक रचनाकार के लिए और दूसरा पाठक के लिए। दोनों स्तरों पर यह प्रक्रिया जटिलता से युक्त तो होती ही है। यहाँ एक पाठक की दृष्टि से कहानीकार स्वयं प्रकाश की रचना-दृष्टि को समझ पाने की कोशिश की जा रही है। इस सन्दर्भ में सहज ही स्मरण ....
