काश कि यह संस्मरण मुझे लिखना ना पड़ता, एक तो इस समय मन पर वैश्विक महामारी कोविड-19 की भयावह नकारात्मकता का बोझ लदा है, उस पर अपने किसी मित्र के चिर प्रस्थान पर उसकी स्मृतियों को पुनर्जीवित करना, उससे जुड़े दुःख को कुरेदना ही तो है। अगर पाखी से फोन ना आया होता तो शायद मैंने इसे कुरेदा ना ही होता…
संयुक्त परिवार की जिम्मेदारियाँ हल्की हुईं तो ना जाने कैसे और कहाँ से साहित....
