"इस रंग से उठाई कल उसने, असद की लाश
दुश्मन भी जिसको देखकर ग़मनाक़ हो गये.."
मिर्ज़ा ग़ालिब...
प्रेम भारद्वाज और साहित्यिक पत्रिका 'पाखी', लंबे समय तक एक दूसरे की परिभाषा और परिचय रहे हैं। ज़ाहिर है मेरा उनसे पहला तार्रुफ़ भी इसी नाते हुआ। सन् 2011/12 की बात है, जिन दिनों मैं दिल्ली के छात्रावास में रहा करती थी, और ख़ाली समय में कहानियाँ इत्यादि लिखा करती थ....
