मैंने कहा- मेरा प्रेम गन्ने के रस की तरह मीठा है ।
तुमने कहा-"गन्ने का रस ,
गन्ने की देह का शोषण है
किसी के देह -सत्व का रस्वादन किया तो
क्या किया ,
किसी की हत्या में रस ढूंढकर नही जिया जा सकता है प्रेम ।"
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हिन्दी साहित्य की पत्रिकाओं की भीड़ में अलग पहचान बनाने वाली 'पाखी' का प्रकाशन सितंबर, 2008 से नियमित जारी है।