स्व. गंगा प्रसाद विमल जी की संभवतः यह अंतिम अप्रकाशित कहानी है। एक सड़क दुर्घटना में उनके निधान से पूरे हिंदी साहित
पूरा पढ़ेमई की इन भीषण गर्मियों में भी अरुणा अपने मकान कीखिड़की से नजर आते, बूढ़े पीपल के पेड़ की हरियाली को महसूस कर रही है।
पूरा पढ़ेअचानक शीलू सिर झटक देती है। अपने हाथों को देऽती है। कुर्सी की दोनाें बाहों की दोनों हाथ थाप दे रहे हैं। जानती है, पह
पूरा पढ़ेरामभरोसे कभी नहीं समझ पाया कि जाहिल क्या होता है । उम्र बीती पर न उसने कभी कोई शब्दकोश ढूँढा न सोचा-विचारी की, बस मान
पूरा पढ़ेछह साल की उम्र में गांव छूट गया था। यादों में बहुत हल्का-सा कुछ है कुहासे की तरह खिंचा हुआ, जो स्मरण रह गया है।
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