【1】
खाता ही खुला है जिंदगी के बैंक में
सांसों की पूंजी पर ब्याज कुछ नहीं !
ज्वाइंट करा लिया है , खाते में तेरा नाम
शिकवा तो अब नहीं कि मेरा कुछ नहीं !
हर रोज़ जमा करता हूँ सेविंग में तेरे गीत
खाता है तेरा एकल , मेरा कुछ नहीं !
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हिन्दी साहित्य की पत्रिकाओं की भीड़ में अलग पहचान बनाने वाली 'पाखी' का प्रकाशन सितंबर, 2008 से नियमित जारी है।