पहले एक नज़र उन पंक्तियों पर जो बलराम ने रवीन्द्र कालिया के उपन्यास ‘17, रानडे रोड’ की चर्चा करते हुए ‘माफ़ करना यार’ में लिखी हैं. ‘साहित्य में लोग कवि-कहानीकार के रूप में प्रतिष्ठित नहीं हो पाते तो पत्रकार या समीक्षक बनकर संतोष कर लेते हैं, जैसे मुम्बई जाकर हीरोबनने के अभिलाषी टीवी सीरियलों में जगह पाकर संतोषकर लेते हैं.’ इसके बाद भी बलराम की पुस्तक की समीक्षा कर....
