‘तू दोस्त किसी का भी सितमगर न हुआ था औरों पे है वो जुल्म कि मुझ पर न हुआ था।’ -ग़ालिब
ममता कालिया
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हिन्दी साहित्य की पत्रिकाओं की भीड़ में अलग पहचान बनाने वाली 'पाखी' का प्रकाशन सितंबर, 2008 से नियमित जारी है।