डाॅ. माणिक विश्वकर्मा

बहुत कमाए घूम-घूमकर

 

बहुत कमाए घूम-घूमकर 

फिर भी रहे फकीर 

संबंधों के मकड़जाल में 

होते रहे अधीर  

होना पड़ा तिरस्कृत हमको 

मिली हमेशा हार 

गिरगिट जैसे बदलता रहा 

लोगों का व्यवहार 

आकांक्षाएं युवा रह गईं 

बूढ़ा हुआ शरीर 

कभी प्रेम का ग....

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