आत्मवक्तव्य/रजनी गुप्त
मेरा अधिकांश कथा साहित्य यथार्थवादी लेखन परंपरा में शामिल है। मुझे शुरू से ही केवल कल्पना में गढ़े वायवीय किरदार पसंद नहीं। जब हाशिए में रहने वालों का जीवन इतना विसंगतिपूर्ण हो, हमारे आस-पास इतनी गैर बराबरी हो और सब जगह अन्याय की चीख पुकारें सुनाई दे रहीं हों और जीवन जीने में हर पग पर दुश्वारियां हों, ऐसे परिवेश में हम उन्हें अनसुन....
