प्रसुन परिमल
काली कोठरियां में बीते नहि रतिया हो
‘‘काली कोठरिया में बीते नहि रतिया हो
किस के बतायी हम पीर रे
बिदेसिया
दिन-रात बीती हमरी दुख में उमरिया हो
सूखा सब नैन के नीर रे
बिदेसिया।’’
हिंदोस्तां की जमीन से हजारों किलोमीटर दूर हिंद महासागर में उभरे छोटे से द्वीप ‘फिजी’ की हवा में तैरती लोकगीत की उक्त पंक्ति में अंतर्निहित तड़प महज जड़ों से उखड़े हिंदु....
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