कल किसी खास योजना पर काम करते हुए संपादक, लेखक अनुज ने कहा, ‘आपके और रवि जी के प्रेमपत्र भी चाहिए।’ मैं ठगी सी रह देखती खड़ी रही। यादों का कारवां गुजर गया आंखों के सामने।
रवि पत्र लिखने से बचते। कभी समुद्र में बहुत उफान आ जाता तभी लिखते। छोटा-सा, सधन मुझे बांहों में समेटता सा खत/कुल ग्यारह महीने की कोर्टशिप में आखिर कितने लिखे होंगे। हालात इतने खस्ता ....
