शिव कुमार दुबे

इबारत


कौम जो गंदा करती खून अपना
खून ते नाता तोड़ बार-बार
जद्दोजहद में ताबड़तोड़ करती 
एक ही पैमाना नापने का/जिसकी
इबारते अस्पष्ट हो चुकी/बार-बार
उन्हीं इबारतों को रटकर/उतारकर
पन्नों की लाइने/भूल कर मानवता
लिखी इबारतो की अमिट लकीरों को
ही अपनी अत्मियाता बना हर 
एक पल उन्हीं शब्दों को दोहरा/
एक अनजाने परिकल्पित 
लोक की कल्पन....

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