(पुरस्कृत पत्र) ‘पाखी’ का जुलाई अंक संपूर्णतः पढ़कर पहले तो अंदर सूना-सूना-सा लगा, पर अब आनंदित महसूस कर रहा हूं। सूनापन बल्कि आतंकित महसूस करने की वजह थी वरिष्ठ साहित्यकार व मार्गदर्शक सुधीश पचौरी जी का आलेख ‘मेरे मित्र मेरे प्रतिमान’ जो कड़वे सच को पत्तल में अचानक परोसे जाने सदृश था। यह हकीकत हिंदी साहित्य की मुख....
