सदानंद शाही

सदानंद शाही की कविता

मुंशी महेंद्र मोहन लाल श्रीवास्तव की हंसी गायब हो गई 

मुंशी महेंद्र मोहन लाल श्रीवास्तव की हंसी
एक दिन अचानक गायब हो गई

संभव है
ये पंक्तियां
आप को
किसी समाचार के शीर्षक जैसी लगें
पर किसी अखबार के नसीब में
कहां कि
वह मुंशी महेंद्र मोहन लाल श्रीवास्तव जैसे
एक मामूली आदमी की
हंसी के
गायब होने की खबर छाप ....

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