धुली हुई थाली को पलट कर कमरे के अंदर रखने और पानी पीने के बाद शोभा पुनः पत्थर के पाट पर आकर बैठ गई। यही एक पाट उसका हमदम है, उसका राजदान। इस पाट पर दिन में दस मर्तबे पानी पड़ता है और यह सूखकर ग्यारहवीं बार भीगने के लिए प्रस्तुत हो जाता है। रात उदास है और शोभा अकेली। अकेला होना कोई बाधा नहीं। उसके मन की एकमात्र बाधा, सड़क पार खड़े मकान पर तिरछे चढ़ी है। उस घर के बाहरी में जल रही बत्....
