इंकलाब ला
जन-जन को जोड़ शैलाब ला
तू कहीं से भी उलगुलान ला
तू कहीं से भी इंकलाब ला!
मीलों का सफर, कोसों की डगर
सिफर’ को भी काबिल और निडर बना
दुख औ’ दर्द में तू साथी बन हर-पहर!
तू कहीं से भी उलगुलान ला
तू कहीं से भी इंकलाब ला!
दो
कच्चे रास्ते या पगडंडी
कोलतार की सड़क सरपट
राहें, कितनी हो विकट
पर तू....
