शिवा

शिवा की छह कविताएं

घरेलू औरत


समय के तमाम
पहियों को बांधकर
वह चलती रही है
स्थितियां वही हैं
घर बदल गए हैं
यह एहसास उसे
मथता रहता है
घर के दरवाजाें से
एकाकार हो लेती है
जैसे घर के अंदर
हवा
और शाम जब
उसके चौखट तक आती है
रात कर लेती है
परोस देती है रोटियां
और तरकारी
अमृत-सा स्वाद उडेल
घर से घर
बनी है सौभाग्यवती
और घरेलू औ....

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