‘पाखी’ अपनी छाप छोड़ने में सफल रही है
‘पाखी’ का फरवरी अंक देखा-पढ़ा। हर बार की तरह इस बार भी सबसे पहले संपादकीय ‘मेरी बात’ को पढ़ गया। आपने बद्रीनारायण को साहित्य अकादमी पुरस्कार दिए जाने को लेकर मचने वाले शोर-शराबे एवं पुरस्कार के खेल पर सार्थक टिप्पणी की है। साथ ही साहित्य महोत्सवों पर बाजार के प्रभाव और उसके महत्व को लेकर भी आपकी चिंता वाजिब है। यह ....
