सूर्य\बाला आठवें दशक में अपार शोहरत के साथ धूमकेतु की तरह चमकीं। उन्होंने किसी के आशीर्वाद के प्रताप से लेखन की दुनिया में खुद को स्थापित-सत्यापित नहीं किया। अपने लेखन में अलगाव, निराशा, ऊबन और उदासी को एक महीन छलनी से छान कर बाहर का रास्ता देखा दिया। पूरब-पश्चिम को किसी महत्वकांक्षी परियोजना के तहत घुलाया-मिलाया नहीं बल्कि जीवन सत्य के लिए जितना आवश्यक हुआ, उसे आदर भाव ....
