पाठक

एक पाठक का पत्र

(1)
‘आंटी’
बिन रोई लड़की के साथ अच्छा नहीं हुआ।
मगर जो हुआ, होना था, स्वाभाविक है।
विनम्र, शांत, सहमे और संकोची सफेद एस्टर्स पूरी जिंदगी अपने को समझे जाने के इंतजार में गुजार देते हैं। समझदार लोग उन्हें समझ कर भी समझने का हौसला नहीं रखते।
मगर मेरी पलकें क्यों नम होती है, आज, कई बरस बीतने के बाद भी! बरसों पहले ‘धर्मयुग’ के शायद अक्टूबर अंक में बिन रोई लड़की को द....

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