सूर्यबाला जी से मेरा परिचय धर्मयुग के माध्यम से हुआ, उनका पहला उपन्यास ‘मेरे संधि-पत्र’ प्रकाशित हो रहा था। उन दिनों न तो मैं नारीवाद के विषय में जानती थी और मेरे जाने हिंदी साहित्य में भी नारी विमर्श मुद्दा न था। लेकिन इस रचना में एक स्त्री के मन के द्वंद्व को उन्होंने जिस कुशलता से उकेरा है, वह आकर्षित करता। उपन्यास की नायिका शिवा आत्मविश्वास से भरपूर एक शिक्षित स्त....
