तुमुल कोलाहल कलह में मैं हृदय की बात रे मन--- प्रसाद की इन पंक्तियों में जो हृदय का स्पंदन है वही स्पंदन वरिष्ठ साहित्यकार स्नेहिल सूर्यबाला की कृति ‘कौन देस को वासी’ से गुजरते हुए ध्वनित होता है। हृदय का स्पंदन ही आत्मिक तृप्ति का बोध कराता है और संभवतः इसलिए यह कृति मन-मस्तिष्क पर अमिट छाप अंकित कर देती है।
सूर्यबाला की इस कृति की यात्रा एक आत्मीय या....
