कैलाश मंडलेकर

सूर्यबाला का व्यंग्य बोध

हिंदी व्यंग्य में सूर्यबाला जी की उपस्थिति बहुत महत्वपूर्ण और गौरतलब है। यह अलहदा बात है कि उन्होंने अपनी उपस्थिति को बहुत ग्लैमर और बड़बोलेपन के साथ कभी उजागार करने का  प्रयास नहीं किया। हिंदी में व्यंग्य की  एक समृद्ध परंपरा रही है, जो भारतेंदु से लेकर आज तक सतत् गतिशील है। आजादी के बाद हिंदी व्यंग्य आत्यंतिक तौर पर परसाई और शरद जोशी के लेखन  से पहचाना गया। आम ....

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