आलोचना को मूल्यांकन की कला कहा जाता है। आलोचना किसी कृति की सीधे व्याख्या नहीं करती अपितु उस कृति को समझने के बहुत से टूल्स हमें मुहैया कराती है।हम पारम्परिक तरीक़े से साहित्य को पढ़ने-पढ़ाने वाली विधियों के आदी विद्यालयी जीवन से हो गए हैं, परंतु आलोचना ठहर जाने वाली दृष्टि से संचालित होने का कार्य नहीं है। वह स्वयं में गतिशील है, वह अपने आप को लगातार बदलती रहती है। किस....
