नीलेश रघुवंशी

एक चीज कम

पेंसिल एक उम्मीद और नाउम्मीद दोनों है
छिलते हुए उम्मीद जगाती है
टूटती हुई नोंक
तीर की तरह कलेजे में धंसती है।

तय ‘गरीबी रेखा’ के आधार पर
जीवन का ग्राफ खीचना बहुत मुश्किल है
हम गरीबी रेखा से नीचे नहीं है
रेखा से ऊपर पहुंचने का तो सवाल ही नहीं
हमारी नसैनी की टांगे टूटी हुई हैं।
हमारे पास मोबाइल, टी-वी- कंप्यूटर
लैपटॉप और एक घर भी है
जिस....

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